संतरे का छायाचित्र / अपनी रामरसोई / सुशोभित
सुशोभित
संतरे का छायाचित्र लेने से अधिक दर्शनीय विफलता मैंने तो नहीं जानी!
मैं भली प्रकार नाकाम रहा। तस्वीर तो ले ली, किंतु उसमें संतरे का अंतर्भाव नहीं मिला। वो एक दो-आयामी चित्र था और मैं यक़ीन से कह सकता हूं कि संतरों और नारंगियों और मौसम्बियों और किन्नुओं के पास तीन से अधिक आयाम होते हैं।
मैं संतरों के असीम सौंदर्य को मंत्रबिद्ध होकर देखता रहा। संतरे गोलमगोल थे। उनका वर्ण सुदीप्त था। उनमें एक अनुरागजन्य स्थूलता थी, वे निरे अमूर्त नहीं थे। उनका आवरण कोमल, स्नेहल और स्निग्ध था। रंध्रों से भरा ऐसा कि अचरज जगाता। रंग, गंध और रस का सुमेल उनमें ख़ूब खिल उठता।
यह सब भला एक छायाचित्र में कैसे आता? छायाचित्र में संतरे के रेशे कैसे समाते? वह अनिर्वचनीय संजाल, जो उसके छिलकों के नीचे बिछला रहता है। मुझे लगा, जैसे संतरों के भीतर जाने कितनी सर्दियां और गर्मियां छुपी थीं, यह यों ही एक निमिष में किसी वृक्ष पर नहीं फूल आया था। मुझे लगा, संतरों के भीतर समयातीत का आवास था।
संतरा वह सब था, जो मैं कभी हो नहीं सकता- अब छायाकार को इस उद्वेग ने आ ग्रसा। मैं अपनी तस्वीर को देखता रहा- छवि का एक विधान। संतरे ने स्वयं को पूरी तरह से उससे बचा लिया था। यह मेरी नहीं, उस समूची पीढ़ी की पराजय थी, जो केवल तस्वीरें चटखाकर ही पूरी दुनिया जीत लेना चाहती थी। उनके अंगूठे नित नई छवियां उगलते थे। जबकि वे सभी एक दोषहीन संतरे के समक्ष परास्त होने को नियत थे।
इससे तो भले चित्रकार थे, जिनमें यह औद्धत्य नहीं था कि वे संतरों को जस का तस फ़िल्मा लेंगे। वे कलात्मक आयामों से चित्र बनाते। मुझे सेज़ा और मतीस के स्थिरचित्र याद आए, जिनमें शीशे या कांसे के भगोने सेबों और संतरों से भरे रहते। वो इसको स्टिल लाइफ़ कहते। स्थिर-जीवन। संतरे मेज़ पर सुस्ता रहे होते और चित्रकार ऐसे तन्मय होकर उनका चित्र बनाते, जैसे किसी देवता का चित्रण कर रहे हों। कॅनवास पर बड़ी कोमलता से वो नारंगी रंग लगाते। उस क्षण की पुलक उनको देर तक उन्मत्त रखती। सफ़ेद निकलंक कॅनवास पर नारंगी वर्ण लगाने का स्फुरण। संतरों के सामने ऐसी विनयशीलता से ही आप स्वयं को साध सकते हैं। फ़ोटोग्राफ़िंग एन ऑरेन्ज : यह दिवा-सपन तो रहने ही दें।
इस संसार में असम्भव चीज़ें कम नहीं। यह संसार नेपोलियन का शब्दकोश नहीं। और इन असंख्य असम्भवताओं में से संतरों का छायांकन सबसे दर्शनीय असम्भाव्य है। संतरों के छायाचित्र बड़े सुंदर और चटख होते हैं, किंतु संतरों को वे अपने आयाम में सहेज नहीं सकते। यह आंखों से सुनने और त्वचा से देखने की तरह व्यर्थ था। अपनी अप्रासंगिकता को अंगीकार किए बिना बड़े से बड़ा छायाचित्रकार संतरों का चित्र खींचने को उद्यत नहीं हो सकता।